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लाल, पीले, हरे, नीले परंपरागत परिधान पहने लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती मुझे हर किसी ने देखा होगा। छोटी मगर प्यारी सी मैं हूं कठपुतली। जीवन के विसात में इंसान की तरह, मैं अपनी भूमिका का निर्वाह करती हूं। मानव के तरह ही मेरे जीवन की डोर अपने आका के हाथ में है। वह हमें जैसे नचाता है हम वैसा ही करते हैं। जिंदगी के हर रंग में हंसना और हंसाना कोई मुझसे सीखें। मुझमें और इंसान में अंतर है तो सिर्फ भावनाओं का। इंसान अपने वारे में सोंच सकता है कि उसे क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं। मगर मैं ऐसा नहीं कर सकती। काश मेरा भी कोई नाम होता, लोंग मुझे मेरे नाम से पहचानते। ग्रामीण परिदृष्य से निकल कर शहरों की गलियों में तरह-तरह के डिजाइनर परिधान पहन कर मैं बच्चों के संग किलकारी मारती। मनोरंजन के माध्यम से मैसेज के अलावा भी मेरा कोई जीवन होता। मैं अपनी मनमोहक अदाओं में सजधज कर स्वयं के ऊपर इठलाती इतराती।
यह बात तो सभी लोग जानते हैं जो आया है, उसे जाना ही है। फिर मुझमें और मानव में अंतर क्या है। मैं भी तो अपने जीवन में सजीव लीला ही करती हूं। मनुष्य अपने विभिन्न रूपो को व्यक्त करने के लिए आवरण बदलता है, तो मैं क्यू नहीं। एक दौर था जब गांव के चौपाल पर बड़े-बूढ़े और बच्चे सब के सब मेरी लीलाओं से राजा महाराजाओं की कहानियां सुन कर मंत्रमुग्ध हो जाते थे, लेकिन वक्त बदला, समय बदला, मै जो कल तक की हीरो थी आज का सिर्फ जीरो हूं।।
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