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यूं हवाओं का चलना
लताओं का उजरना
बिजली का चमकना
मन में उत्पन्न कर रही आशंका।
पर किसानों के कंधे पर हल से
मिल रही नई आशाएं और आकांक्षा।
वृक्ष के झरोखे से खग देख रहा मौन
टपकती छत की बूदों से बच्चो का रूदन
और माँ करा रही बार-बार मौन।
फिर भी हरियाली की नयी आशा से
चेहरे पर खुशी की मुस्कान
और गर्मी की तपिस से मिल रहा अभयदान
मगर कचड़े की झुडों से शहरों में
कीचड़ की संस्फीति
और बारिश की भीषणता से
मन में भय की स्थिति।
बार-बार बादलों का गर्जन, सिंह——————–नाद
ललकार रहा मानव को
और तोड़ रहा उसका अहंकार
क्यों कर रही प्रकृति मानवता पर प्रहार
क्या है प्रकृति की इस दुर्लभ नजारों का राज।
क्यों तोड़ी इसने अपनी लाज
बार-बार मन में उठ रहे लाखों सवाल।
क्यों शत्रू बन गया आज विधाता
हवाओं ने उजाड़ा आज कई मरई
क्या सचमुच में प्रकृति का दुःशमन है
यह दरिद्र गँवई।
जन जीवन पर इस अत्याचार का क्या है निदान
क्या मानव सर्वदा यू ही रहेगा परेशान।।
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