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सच्चाई छुप नहीं सकती !

दस्तक
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महिलाओं के प्रति अपराध और लिबास…………..

-प्रकाश कुमार
शीला की जवानी, मुन्नी की बदनामी और जलेबीबाई के ठुमके ने लोगों की जम्हाई तक उड़ा दी। काफी तारीफ भरा दौर था, जब इन फिल्मी गानों का सफल प्रदर्शन हुआ। अंग प्रदर्शन के इस महाएपिसोड में जिसने जितने कपड़े उतारे, उसकी उतनी ही अधिक चर्चा हुई। इस मुन्नी, शीला और जलेबीबाई की वजह से फिल्मों की सफलता में चार चांद लग गए। दिल खोलकर दर्शक ने भी इन पर पैसों की बरसात की। किसी को भी न तो इन गानों पर आपत्ति हुई और न ही इनके भड़काऊ लिबास से। इन सभी तथ्यों की चर्चा का औचित्य यह है कि समाज का आधा हिस्सा, परिवार की जन्मदात्री नारी के जिस रूप को रील लाइफ में स्वीकार किया गया, उसे रीयल लाइफ में उतना ही नकार दिया गया। पिछले साल दिल्ली में बेशर्मी मोर्चा के रूप में जंतर-मंतर पर किया गया सफल विरोध प्रदर्शन इसका ताजा उदाहरण है। टोरंटो में माइकल संग्रेनेटी ने क्यून पार्क में स्लट परेड के रूप में पुलिस ऑफिसर के उस बयान के विरोध में प्रदर्शन किया जिसमें महिलाओं के प्रति होने वाले हिंसा और आपत्तिजनक वयवहार का जिम्मेदार उनके कपड़े को बताया था। हाल में हमारे देश में भी कुछ इसी तरह का गैरजिम्मदाराना बयान सुर्खियों में था।
महज कुछ दिन पहले कर्नाटक के महिला एवं बाल कल्याण मंत्री सीसी पाटिल और आंध्रप्रदेश पुलिस महानिदेशक वी.दिनेश रेड्डी भी इस जमात में शामिल हो गए। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि अब कुछ महिलाएं भी मानने लगी हैं कि उनके प्रति होने वाली आपत्तिजनक गतिविधियों का एक प्रमुख कारण उनका लिबास भी है। हाल में ही एमटीवी रूडिज की महिला प्रतिभागी (प्रतिमा डागर) ने अपने साक्षात्कार के दौरान महिलाओं के प्रति छेड़-छाड़ के लिए लिबास को जिम्मेदार बताया।
लोगों का मानना है कि इन फैशनेबल और पारदर्शी कपड़ों से पुरुषों को उकसावा मिलता है और नतीजन बलात्कार जैसी घटनाएं होती हैं। यहां सवाल उठता है कि कैसे मान लिया गया कि बलात्कार की वजह छोटे कपड़े है? छोटे कपड़े का तात्पर्य यह तो नहीं कि पुरूष प्रधान समाज अपनी हवस मिटाने के लिए महिलाओं को अपना शिकार बनाए। उनके साथ जोर-जबर्दस्ती या बलात्कार जैसी वारदात को अंजाम दे। यह बड़े शर्म की बात है कि हमारे समाज के स्वयं-भू ठेकेदारों ने सिर्फ महिलाओं के लिए ही नियम बनाए जुर्म पुरुष करें और दोषी महिलाओं को ठहरायें। दरअसल, समाज के वे लोग जिन्हें महिलाओं के लिबास में वासना की ज्वाला दिखती है, वे मानसिक रूप से विकृत हैं। यह उनकी विकृति मानसिकता का परिणाम है कि अबोध बच्चियों के साथ दिनदहाड़े अमानवीय व्यवहार किया जाता है। समाज में परिधान के प्रति पुरुषों द्वारा समय-समय पर जो बयान दियें गए हैं, वह खुद को आरोपमुक्त करने और समाज का स्वयं-भू ठेकेदार साबित करने का जरिया है। अगर ऐसा नहीं तो क्यों नहीं बलात्कारी अपने घरों की महिलाओं को निशाना बनाते ? क्या उनके घर की महिलाएं घर से बाहर नहीं निकलती ? फिर यह अमानवीय व्यवहार क्यों ? चंद बयान दे देने से तो सच्चई छुप नहीं सकती।।

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