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बिहार बदल गया

दस्तक
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मियां गफूर गाजियाबाद वाले अपनी लम्बी सफेद दाढ़ी को बार-बार सहला रहे थे। उनकी आंखों में नमी देख माहौल गमनीय हो गया था। रुआंसे होकर मियां ने अपनी जुबान से लगाम हटाया। उनकी इस अदा से कल्लन ने इरशाद फरमाया। अमा मियां क्या बात है, आज गंगा-यमुना गाजियाबाद में कैसे बहने लगी ? कराहते हुए गफूर मियां कल्लन से कहने लगे, सुना है बिहार बदल गया! अरे मियां यह कौन सी नई बात है। जीवन में तो बदलाव आते-जाते रहते हैं। कल्लन की इस चिकनी-चुपड़ी बातों से मियां का मिजाज सांतवे आसमान पर चढ़ गया। कल्लन से कराहते हुए बोले अरे मुंहझौसे मैं पिछले महीनें ही बिहार से आया हूं, सब जैसे का तैसा है। यह मीडिया के माकिर मंसूबे से मुकम्मल हो गया कि बिहार बदल गया। मेरे ही गांव की बात है। एक सज्जन ने इश्क फरमाने के लिए पीटपीट कर बीवी की हत्या कर दी। अपनी माशूका से शादी भी कर लिया। उसे न तो किसी ने रोका और न ही प्रशासन को खबर लगी। नई बीवी खातिर बच्चे को बेच दिया और तुम कहते हो कि बिहार बदल गया! अरे मूर्ख सरकार बदलने से समाज नहीं बदलता। बिहार में सरकार बदली है, समाज तो वही है। आज भी वहां के लोग सड़क की ईंट भैंस की नाद के नीचे डालना नहीं भूलें हैं। यह तो सदियों से चली आ रही परंपरा है जिसे निभाना प्रत्येक बिहारी अपना कर्तव्य मानते हैं। अगर कोई इस प्रतिस्पधा में शामिल नहीं है, तो गनीमत है। भगवान ही उसे बचाए।
सरकार चाहे जितनी भी कोशिश कर ले इन्हें बदला नहीं जा सकता। भले ही इन्हें तीन रुपए किलो अनाज मिल रहा है, कभी विकास नहीं कर सकते। करें भी तो कैसे? इनका मानना है जब खाने के लिए दाना मिल ही रहा है तो काम करने की जरुरत ही क्या है, कैसे भी बीपीएल सूची में नाम जुड़ जाए। घर बनाने के लिए 40,000 नकद और तीन रुपए किलो अनाज मिलेगी, ऊपर से तीन लीटर सस्ते दाम पर किरोसीन की सरकारी व्यवस्था है। कुल मिलाकर अपनी तो वारे-न्यारे हैं। घर बने या न बने इसकी किसे फिकर है। इंदरा आवास में पैसा ही कितना मिलता है। सरकार से कह देंगे घर बाढ़ में बह गया। भाई जब घर के खातिर हमने रिश्वत दिया है, तो हमारा अधिकार बनता है कि हम बार-बार सरकारी फंड का लाभ उठाएं। जरूरत मंद को मदद मिल रहा है कि नहीं इसकी फिकर किसको है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री के नाम की योजना है अतः फंड का पैसा भी प्रधान व्यक्ति को ही मिलना चाहिए। सरकार तो पहले से ही घोषणा कर चुकी है कि देश में 26 रुपया कमाने वाले गरीब नहीं है। यह अलग बात है कि सरकारी नीति क्या है, पता नहीं? गरीबी हटाओं या गरीबों को, यह समझ से पड़े है। रिश्वतखोरी, कालाबाजारी सर्वव्याप्त है। भाई इससे हमें क्या हम तो गाजियाबाद में पड़े हैं। बिहार बदला कि नहीं यह बिहार में रहने बाले जाने। अगर वहां की समाज अपनी सोंच में बदलाव लाएगा तो जाहिर है कि बिहार बदलेगा। कल्लन की चटुकारिता को भांप गफूर ने खरीखोंटी सुना दी। यह तो उसकी गनीमत थी कि गफूर ने अपने अल्फाज को यहां विराम दिया।।

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