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कुछ खड़े हुए, कुछ अड़े हुए,
संसद में सब लड़े हुए।
चाय-चपाती की दुकान पर,
लगता है सब मिले हुए।
ताल ठोक रहे संसद में,
जैसे रणभुमी में जमें हुए।
संसद की यह गरिमा देखो,
सांसद जेल में पड़े हुए।
चोर-उच्चको की महफिल,
संसद में है जमें हुए।
विभाजन की कटोरी लेकर,
तोता हैं ये बने हुए।
लोक-लाज छोड़ सब सांसद,
अभिनेता है बने हुए।
जनता की दुहाई देकर,
विपक्षी की भौंह तने हुए।
कुछ खड़े हुए, कुछ अड़े हुए,
संसद में सब लड़े हुए।
गड़ा मुर्दा उखाड़ रहे,
मुद्दे कब्र में है पड़े हुए।
जात-पात और धर्म के नाम पर,
टुकड़ो में हैं बंटे हुए।
सवा सौ करोड़ की आबादी ठग कर,
रंगे सियार हैं बने हुए।
लूट-पाट, हत्या के ठेकेदार,
संसद में है पड़े हुए।
श्वेतांबर बने सब सांसद,
संसद में है जमें हुए।
जनमत- जनमत चिल्लाकर,
विपक्षी सब हैं मिले हुए।
कुछ खड़े हुए, कुछ अड़े हुए,
संसद में सब लड़े हुए।
चाय-चपाती की दुकान पर,
लगता है सब मिले हुए।
संसद की यह गरिमा देखो,
सांसद जेल में हैं पड़े हुए।।
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