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उड़ान

दस्तक
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उड़ते-उड़ते एक अजूबा जा पहुंचा आसमान में-2
नींद खुली तो खुद को पाया वह जहान में,
आत्मज्ञान और आत्म समर्पन से फिर वह उड़ना चाहा
निंदिया रानी जा चुकी थी, ऐसा कर नही पाया।
लेटे-लेटे सोच रहा था, क्या हिन्दू क्या है मुस्लमान-2
उस बुद्धू को समझ न आया,हैं दोनो इन्सान।
सोच-सोच जब थक गया तो, जा पहुंचा कब्रिस्तान-2
क़ब्र के आगे बोल उठा मैं हिन्दू तुम हो मुस्लमान
मुझे जलाया जाता है, तुम्हे दफनाया जाता है-2
मैं मंदिर जाता हूँ, तुम मस्जिद जाते हो
मैं शीश झुकाता हूँ, तुम सर नवाते हो
मै हाथ जोड़ता हूँ, तुम हाथ उठाते हो
आत्म ज्ञान की इस भूल को, चला बांटने जहान में-2
हिन्दू, मुस्लिम की इस भूल ने दंगा लाया हिन्दुस्तान में
कुछ हिन्दू मरे कुछ मुस्लिम मरे-2
बात बीच-बचाव की आयी
दुनियाँ से वह ऐसे गुल हुआ मानों बिजली गई और आई
मानवता के चेहरे पर कालिख पोत-2
वह बन गया समाज रक्षक
लूट-खसोट रक्तपात कर बन गया भक्षक
स्वार्थ साधना की एक उड़ान ने बदली दुनियाँ की तस्वीर
जगह-जगह पैदा किए उसने हिंदू मुस्लिम वीर
पहले जो रहते थे साथ मिलकर सब करते थे काज
अब हुआ उनमें विखण्डन हजार।
स्वार्थ साधना की इस उड़ान ने बदली दुनियाँ की तकदीर
कल थे जो भाई-भाई अब बन गए काफिर
मानव मन की इस उड़ान से हाय लगी किस्मत को मेरी
काश वह उड़ान न भरता रहता जग में मिल्लत मेरी।।

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